How social media is ruining your life by putting content that is somewhere completely fake?

सोशल मीडिया अब पहले जैसा बिलकुल नहीं है और न ही आगे होगा क्योंकि जिस तरह से सोशल मीडिया के अल्गोरिथम को बदला जा रहा है उससे ये बात तो तये है की ये एक नार्मल बदलाव तो नहीं है।
और इस बात को हमे जानना भी चाहिए और उसके हिसाब से सतर्क भी रहना चाहिए ।

एक जॉर्नलिस्ट जिनका नाम मरिया रेसा है और उन्होंने अभी ही हाल में नोबेल पुरुष्कार जीता है उन्हें कहा है “Social media platforms are biased against facts and creating “a virus of lies” that threatens all democracies”
इनका मानना यह है की सोशल मीडिया सिर्फ झूठ का प्रदर्शन कर रहा है और इस झूठ का उपयोग करके किसी भी लोकतंत्र को पूरी तरह से तहस नहस किया जा सकता है।

हमारे हिसाब से ये बात सिर्फ लोकतंत्र से जुडी हुई नहीं है, सोशल मीडिया में जो कंटेंट जमीनी रूप से सभी लोगों के बीच में फ़ैल रहा है या कहें की फैलाया जा रहा है उसके हिसाब से पूरे के पूरे देश के मानसिक अवस्था में भी असर देखने को मिल रहा है, लोग बेरोजगार हो रहे है, जिस खाली समय को किसी प्रोडक्टिव काम में लगाना चाहिए उसे ये लोग सोशल मीडिया में ब्राउज करने में लगते है, शारीरिक समस्या का बढ़ना क्योंकि सोशल मीडिया की वजह से लोगों में शारीरिक मूवमेंट कम होते जा रहा है।

चलिए आज आपको उन चीजों से रूबरू करते है, जिनको देखते हुए ये सोशल मीडिया की अल्गोरिथम डिज़ाइन की जाती है जिससे फेसबुक जैसी कंपनी को हद्द से ज्यादा मुनाफा होता है –

  1. ये लोग इंसानो की मनोविज्ञान को ढंग से एनालिसिस करते है तभी आप चाह कर भी उस एप्लीकेशन से बहार नहीं आ पातें, सोशल मीडिया के एप्लीकेशन आपके अन्दरूनी संरचना को आपसे ज्यादा अच्छी तरह से जानतें है, वो जानतें है की आपको क्या पसंद है और क्या न पसंद है क्योंकि आप है तो इंसान ही न
  2. ऍप्लिकेशन्स के फीचर्स कुछ इस तरह से डिज़ाइन किये जातें है जिन्हे आप पसंद किये बगैर रह ही नहीं पाएंगे
  3. एप्लीकेशन के कलर से लेकर यूसबिलिटी तक सब कुछ के लिए रिसर्च एंड डेवलपमेंट टीम बैठाई जाती है
  4. इन एप्लीकेशन क्रिएटर्स को पता है की आप एडल्ट कंटेंट की तरफ खीचें चले आएंगे इसलिए अपने देखा होगा जो लोग एडल्ट कंटेंट से मिलता जुलता कंटेंट बनाते वो जल्दी लाइमलाइट में आ जातें, पर ये कड़वा सच है की सोशल मीडिया में जो जितना जल्दी फेमस होता है एडल्ट कंटेंट की वजह से वह उतना जल्दी ही डिफेम भी हो जाता है, क्योंकि कंटेंट शो करने की सिर्फ लिमिटेड स्पेस ही है और सोशल मीडिया क्रिएटर चाहतें है की उसमे हमेसा फ्रेश कंटेंट आता रहे इसीलिए कुछ समय बाद कुछ एकाउंट्स डेड अकाउंट बन जातें है। तो कुछ इस तरह से एप्लीकेशन डेवेलोप किये जातें है।

आपने सुना होगा की सोशल मीडिया का उपयोग हमे अपनी आवाज उठाने के लिए कर सकतें हैं पर मारिया रेसा का कहाँ है की ये कम्पनीज फ्रीडम ऑफ़ स्पीच का गलत फायदा उठा रही हैं, वह कहती हैं की “It’s a freedom of reach issue, not a freedom of speech issue” और कुछ हद तक ये बात ठीक भी हैं सोशल मीडिया कम्पनीज का अल्टीमेट गोल यही होता है की वो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँच सकें। क्योंकि जितने ज्यादा लोगों तक पहुँचेंगे उतने ज्यादा प्रॉफिट वो कम्पनीज बना पाएंगी।

अंत में बस ये कहना चाहेंगे की आये दिन मीडिया में ये सोशल मीडिया के सीईओ इस बात को लेके अपनी सफाई पेश करते रहतें हैं की हम इन सब चीजों को ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं, पर वो जानते हैं यदि उन्होंने इसे पूरी तरह से हटा दिया तो उनकी कंपनी ग्रो नहीं कर पायेगी ।
इसका एक ही इलाज है की आप खुद ही अपने आप को कंट्रोल में रखें नहीं तो आपका ही नुकसान होगा, कम्पनीज का तो फायदा हो ही रहा हैं।

हम तरुण कुमार वर्मा, सोशल मीडिया के अगेंस्ट नहीं हैं, क्योंकि समय बदल रहा हैं और हमे भी उसके मुताबिक बदलना चाहिए बस हम आप सभी को समझाना चाह रहे हैं की सोशल मीडिया आपको किस हद तक प्रभावित कर सकता हैं और जिससे आपको कितना नुकसान हो सकता हैं।

धन्यवाद |

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